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यज्ञ की प्रक्रिया अत्यन्त शुद्ध और विधान निश्चित हैं यज्ञ विधान में अशुद्धि और प्रक्रिया में त्रुटि

  • Brahmachari Girish Ji
  • Jun 24, 2019
  • 2 min read



गुरूदेव ब्रह्मानन्द सरस्वती आश्रम, भोपाल में वैदिक यज्ञाचार्यों से चर्चा के दौरान परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी के प्रिय तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने यज्ञों में शुद्धता पर बहुत जोर डाला। उन्होंने बताया कि ‘‘वैदिक ग्रन्थों में वर्णित वैदिक विधानों और प्रक्रियाओं के अनुसार ही यज्ञों का संपादन किया जाना चाहिए। विधान के उल्लंघन और जरा सी असावधानी, अशुद्धता या त्रुटि यजमान और यज्ञाचार्य के लिये विनाशकारी सिद्ध हो सकती है।’’

उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि ‘‘हमने अनेक यज्ञों में स्थापित यज्ञ मण्डपों का भ्रमण करके देखा कि कुछ यज्ञ मण्डप विधान पूर्वक नहीं बनते हैं, हवन कुण्डों का आकार शास्त्रोक्त नहीं होता, सड़क चलता कोई भी व्यक्ति बैठकर हवन करने लग जाता है जिसे विधान की कोई जानकारी नहीं है, शुद्धि के ऊपर ध्यान नहीं दिया जाता। यज्ञ कराने वाले पंडित या आचार्यों का वेदोच्चारण अशुद्ध होता है, स्वर ठीक नहीं होता है, सामग्री अशुद्ध होती है, सामग्री सड़क पर पड़ी होती है जिस पर पशु बैठे होते हैं। हम किसी को भोज के लिये आमंत्रित करें और शुद्ध स्वादिष्ट भोजन पकवान के स्थान पर अशुद्ध या सड़ा हुआ दुर्गन्धयुक्त भोजन परोसें तो एक साधारण व्यक्ति भी अपशब्द कहता हुआ भोजन छोड़कर चला जायेगा। इसी तरह हम देवताओं को आमंत्रित करें और उन्हें समिधा में यूरिया और अन्य विशैले उर्वरकों या कीटनाशक युक्त शर्करा, जौ, तिल, घृत आदि सामग्री से हवन करें तो असीमित शक्ति के धनी देवता निश्चित रूप से कुपित होकर यज्ञकर्ता को दण्डित करेंगे और चले जायेंगे। यज्ञ का नकारात्मक हानिकारक फल होगा।’’

ब्रह्मचारी गिरीश ने यज्ञ आयोजकों से करबद्ध विनम्र अनुरोध किया कि वे केवल सिद्धहस्त, योग्य यज्ञ विशेषज्ञों द्वारा ही यज्ञ का संपादन करायें। यदि उनके पास विशेषज्ञ न हों तो पहले उन्हें योग्य आचार्यों से प्रशिक्षित करा लें। यदि सहायता की आवश्यकता हो तो महर्षि वेद विज्ञान विश्व विद्यापीठम् प्रशिक्षण कराने को तैयार है।

ब्रह्मचारी गिरीश ने यह भी बताया कि महर्षि विद्यापीठ के ब्रह्मस्थान, करौंदी, सिहोरा परिसर में 1331 वैदिक पंडितों द्वारा एक पाठात्मक अतिरुद्र महायज्ञ नित्य संपादित हो रहा है। साथ ही भोपाल परिसर में अब तक 5 लक्षचण्डी महायज्ञ पूर्ण हो चुके हैं और छठवाँ चल रहा है। महर्षि महेश योगी जी ने अनेक वर्षों तक भारत के श्रेष्ठतम और योग्य यज्ञाचार्यों और वैदिक विद्वानों के साथ सलाह करके लगभग 300 लुप्तप्राय यज्ञ विधानों को पुनःजाग्रत किया और वैदिक पंडितों का प्रशिक्षण किया। गौरतलब है कि महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठम् ट्रस्ट अब तक लगभग 60,000 वैदिक विद्वानों, कर्मकाड विशेषज्ञों, याज्ञिकों का प्रशिक्षण करा चुका है जो सम्पूर्ण विश्व में फैले हुए हैं और विशुद्ध वैदिक तरीके से यज्ञानुष्ठान आदि सम्पादित करते व कराते हैं।

विजय रत्न खरे

निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क

महर्षि शिक्षा संस्थान

 
 
 

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