भारत से ही विश्व शान्ति सम्भव
‘‘विश्व शान्ति का स्वप्न और संकल्प न जाने कितने शाँति प्रियजनों ने देखा और लिया किन्तु यह केवल एक दिवास्वप्न ही रह गया। स्वप्न और संकल्प वास्तविक रूप से फलीभूत क्यों नहीं हुआ, इसका विश्लेषण किसी ने नहीं किया। शायद हर एक ने केवल बौद्धिक स्तर पर विचार और प्रचार करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। आज भी यही हो रहा है। विश्व शांति विषय को लेकर बड़ी-बड़ी चर्चायें, गोष्ठियां, कार्यशालाएं आयोजित हो रही हैं। विभिन्न विषयों के श्रेष्ठ विद्वान एवं वैज्ञानिक भाषण दे रहे हें, विचार विमर्श हो रहे हैं, सुझाव दिए जा रहे हैं किन्तु शाँति अभी बहुत दूर दिखती है। जब तक मनुष्य में आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों क्षेत्रों की शांति नहीं होगी, तब तक समाज, राष्ट्र और विश्व परिवार में शांति स्थापित नहीं हो सकेगी। ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी ने विश्वशांति की स्थापना का कार्यक्रम बना दिया है और हम उसके क्रियान्वयन के लिए प्रयासरत हैं। इसमें समाज के प्रत्येक वर्ग के सहयोग की आवश्यकता है। विश्वशांति केवल भारतवर्ष से ही हो सकती है क्योंकि भारत के पास उसके लिए आवश्यक ज्ञान है, तकनीक है, सामर्थ्य है और सदिच्छा है।’’ ये विचार महर्षि जी के परम् प्रिय तनोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने महर्षि विश्व शाँति आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
ब्रह्मचारी गिरीश जी ने बताया कि ‘‘विश्व शाँति का संकल्प एक कठिन संकल्प है, यह एक महायज्ञ का संकल्प है किन्तु असम्भव नहीं है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए 18 जुलाई 2008 को ‘‘महर्षि विश्व शाँति आन्दोलन’’ की स्थापना की गई है। भारत में लाखों नागरिक इस आन्दोलन से जुड़ गए हैं। इस विश्व शांति आन्दोलन के मूल में भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान है। हमारे वैदिक वांगमय में वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद), वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद, ज्योतिष), उपांग (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, कर्म मीमांसा), उपवेद, आयुर्वेद, गन्धर्ववेद, धनुर्वेद एवं स्थापत्य वेद), उपनिषद, आरण्यक, ब्राह्मण, इतिहास, पुराण, स्मृति और प्रातिषांख्य जैसे ग्रंथ उपलब्ध हैं जो मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों का विशालतम ज्ञान-विज्ञान समेटे हुए हैं। वैदिक सिद्धांतों एवं प्रयोगों की शिक्षा प्रत्येक नागरिक के लिए होना चाहिए जिससे वह सात्विक, सर्वसमर्थ, परिपक्व, विकसित मन, बुद्धि, चेतना आत्मवान, सहिष्णु, आत्मनिर्भर, समस्या रहित, रोग रहित और त्रुटि रहित आदर्श जीवन जी सके। महर्षि जी द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान और इसके उन्नत कार्यक्रम एवं तकनीक के व्यक्तिगत व सामूहिक अभ्यास व उनके लाभों पर अब तक 35 देशों के 230 स्वतंत्र शोध संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों में 700 से भी अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान हो चुके हैं जिसके अनेकानेक सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि यदि किसी जनसंख्या का एक प्रतिशत भावातीत ध्यान का एक ही समय में सामूहिक अभ्यास करें या फिर जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल के बराबर संख्या में एक साथ नागरिक महर्षि सिद्धि कार्यक्रम एवं यौगिक उड़ान की तकनीक का सामूहिक अभ्यास नित्य प्रातः संध्या करें तो समस्त नकरात्मक प्रवृत्तियों का शमन होकर सकारात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है। महर्षि जी के साधकों ने अनेक देशों में विश्व शांति सभायें आयोजित की और महर्षि जी द्वारा प्रणीत तकनीकों का सामूहिक अभ्यास किया। अनेक सरकारों ने अपने वैज्ञानिकों से सभा के दौरान देश के विभिन्न घटनाक्रमों पर अध्ययन कराया और पाया कि इस समय में दुर्घटनायें कम हुई, अस्पतालों में रोगियों की संख्या घटी, अपराध दर कम हुई, आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, राजनीतिक स्थिरता बढ़ी, आतंकवाद में कमी आई, युद्ध की सम्भावनायें कम हुई।
भारत में शांति स्थापना और समस्याओं के निदान के लिए सभी प्रांतीय सरकारें और राष्ट्रीय भारत सरकार यौगिक अभ्यास करने वाले समूहों की स्थापना करके अपने-अपने राज्यों और समूचे भारतवर्ष के लिये अजेयता की प्राप्ति कर सकती है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश सरकार को अपनी छः करोड़ जनसंख्या के लिए केवल 800 नागरिकों की आवश्यकता है। सम्पूर्ण भारत की सवा सौ करोड़ जनसंख्या के लिए केवल 3600 व्यक्तियों की आवश्यकता है। यदि प्रति व्यक्ति प्रति माह व्यय रू. 10,000 माना जाए तो मध्य प्रदेश सरकार पर कवेल प्रतिमाह रू. 80,00,000 और प्रतिवर्ष रू. 9,60,00,000 का होगा। सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए प्रतिमाह रू. 3,60,00,000 और प्रतिवर्ष व्यय 43,20,00,000 होगा। यह व्यय सरकारों द्वारा सुरक्षा के प्रबन्ध पर किये गये व्यय की तुलना में एक नगण्य राशि है। यदि सरकारें चाहें तो उन्हें नई भर्ती की आवश्यकता भी नहीं है। किसी भी एक सुरक्षा विभाग के कर्मचारियों को प्रातः संध्या यदि 3-3 घंटे का समय यौगिक अभ्यास के लिए दे दिया जाए तो अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं आयेगा।’’
ब्रह्मचारी गिरीश ने कहा कि महर्षि संस्थान इसके लिये प्रशिक्षण और संचालन का दायित्व लेने को तैयार है। भारत में शाँति और फिर भारत के माध्यम से विश्वशांति उनक संकल्प है।
विजय रत्न खरे
निदेशक - संचार एवं जनसम्पर्क
महर्षि शिक्षा संस्थान
留言