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Brahmachari Girish Ji

सत्यमेवजयते बहुत महत्वपूर्ण सिद्धाँत

परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी के प्रिय तपोनिष्ठशिष्य ब्रह्मचारी गिरीश जी ने आज कहा कि "सत्यमेवजयते" एक बहुत बड़ा, महत्वपूर्ण औरमूल्यवान सिद्धाँत है। जो मनुष्य अपनी दिनचर्या,जीवनचर्या सत्य पर आधारित रखेंगे उन्हें सदाविजय की प्राप्ति होगी, पराजय कभी नहीं देखनीपड़ेगी। उन्होंने कहा कि वैदिक वांगमय सत्यसम्बन्धी गाथाओं और उनके शुभफलों से भरा पड़ा है।


‘‘इस काल में हमने महर्षि महेश योगी जी को सत्य के पर्याय रूप में देखा।50 वर्षों तक शताधिक देशों में अनेकानेक बार भ्रमण करके समस्त धर्मो,आस्था, विश्वास, परम्परा, जीवन शैली के नागरिकों को भारतीय वेद विज्ञानका जीवनपरक ज्ञान देना, भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम, योगिक उड़ान,ज्योतिष, गंधर्ववेद, स्वास्थ्य, वास्तुविज्ञान, कृषि, पर्यावरण, पुनर्वास आदिविषयों का सैद्धाँतिक ज्ञान और प्रायोगिक तकनीक देना किसी एक व्यक्ति केलिये असम्भव है। जब महर्षि जी विश्व को दुःख से, संघर्ष से मुक्त करनेनिकले थे, तब आज की तरह ईमेल, मोबाइल, इंटरनेट, प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिकमीडिया, संचार, शोसल नेटवर्क इतना सुलभ नहीं था। सारा कार्य चिट्ठी-पत्रीसे होता था। गुरुदेव तत्कालीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषितस्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी ने हिमालय बद्रिकाश्रम की गद्दी 165 वर्ष तकरिक्त रहने के पश्चात् 1941 में सम्हाली थी और अपने, गहरे पूर्ण वैदिक ज्ञान,तप, परिश्रम से पूरे भारतवर्ष विशेषरूप से उत्तर भारत में अध्यात्म और धर्मकी पताका घर-घर में फहरा दी। बड़ी संख्या में विशाल यज्ञों का आयोजनकिया। गुरुदेव के कार्यों के आधार में उनका ज्ञान, तप और प्रमुखतः सत्वथा।

‘‘पूज्य महर्षि जी ने 13 वर्ष श्रीगुरुदेव के श्रीचरणों की सेवा करते हुए साधनाकी और ज्ञान व सत्य के मार्ग को अपनाकर सारे विश्व में जो भारतीय ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार, अध्ययन-अध्यापन और कार्य योजनाओं काक्रियान्वयन किया वह अद्वितीय है, न भूतो न भविष्यति।

ब्रह्मचारी गिरीश ने कुछ निराशा जताते हुए कहा कि ‘‘इस कलिकाल में मानवजीवन से सत्व का ह्रास होने के कारण तनाव, परेशानियाँ, दुःख, संघर्ष,आतंक, चिन्तायें, रोग-बीमारी आदि तेजी से मानव जीवन को जकड़ रही हैं।हम किसी की आलोचना या निन्दा नहीं करना चाहते किन्तु सत्य तो यह हैकि आज अध्यात्म या धर्म की जाग्रति के प्रचार के स्थान पर व्यक्ति केन्द्रितप्रचार अधिक हो रहा है। यदि समस्त धर्म गुरु अपने-अपने शिष्यों को नित्यसाधना के क्रम से जोड़ दें तो भारतवर्ष की सामूहिक चेतना में सतोगुण कीअभूतपूर्व अभिवृद्धि होगी और सत्यमेवजयते पुनः स्थापित होने लगेगा।"

गिरीश जी ने यह भी कहा कि ‘‘आज धर्मगुरुओं के उत्तराधिकार को लेकरमठों, अखाड़ों, पीठों, संस्थाओं में वैचारिक, वैधानिक मतभेद के साथ-साथमारपीट और साधु संतों के बीच खून-खराबे तक के समाचर पढ़ने और सुननेको मिलते हैं। हमें यह समझ नहीं आता कि सन्यास ले लेने वाले किसी पदया सम्पत्ति या गद्दी के या प्रतिष्ठा के लिये क्यों लड़ते हैं? यह अपनी वैदिकपरम्परा के विरुद्ध है। यह प्रमाणित करता है कि उनका सन्यास वास्तविकनहीं है। भगवा वस्त्र धारण कर, साधु वेष बना लेना केवल दिखावा है।सन्यासी तो मन से होना चाहिये। आत्मचेतना से सन्यासी हों और यह सबव्यक्ति के स्वयं की शुद्ध सात्विक चेतना पर निर्भर होता है। साधना की कमीसतोगुण में कमी रखती है, रजोगुण और तमोगुण हावी हो जाते हैं तबसन्यासी अपने कर्तव्य से विमुख होकर साधारण मनुष्य की तरह आचरणकरने लगते हैं, धर्म गुरु का केवल नाम रह जाता है और सत्व दूर रह जाताहै। संत कबीरदासजी ने ठीक ही कहा है मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा।"

ब्रह्मचारी गिरीश ने कहा कि वे सन्तों, साधुओं, सन्यासियों और धर्म गुरुओंके श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम करते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि वेअपने शिष्यों, भक्तों को सत्यमेव जयते की विद्या प्रदान कर भारतीय औरविश्व परिवार के नागरिकों का जीवन धन्य करें और सत्य पर आधारितअजेयता का उपहार आशीर्वाद में दें। भारत और विश्व सदा भारतीय साधकोंऔर धर्म गुरुओं का ऋणी और कृतज्ञ रहेगा।

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