हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज एवं राष्ट्र के समस्त अच्छे नागरिकों का स्वप्न अपने समाज एवं राष्ट्र को आदर्श बनाना है। जब हम राजमार्गों से गुजरते हैं, तो हम कई जगह ‘आदर्श ग्राम’ का संकेत देखते हैं। ग्राम वास्तव में आदर्श है अथवा नहीं यह भिन्न प्रश्न है किन्तु इतना तो है कि एक अच्छा विचार एवं संकल्प तो है। हमने कभी भी आदर्श शहर का संकेत नहीं देखा है। क्यों? इस बात पर विचार करना अतिरेक है कि क्या एक शहर आदर्श बन सकता है। क्या हमने कभी इस बात पर विचार किया कि हमें हमारे समाज, नगर, प्रांत, राष्ट्र एवं राष्ट्र मण्डल को आदर्श बनाने के लिए क्या करने की आवश्यकता है? शायद नहीं। प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों में व्यस्त है। उसके पास स्वयं के विषय में विचार करने का भी पर्याप्त समय नहीं है, अन्य के विषय में अथवा समाज के विषय में क्या विचार करेगा। विभिन्न धर्मों, विभिन्न संस्कृतियों के महान संतों, ऋषियों, महार्षियों ने विभिन्न समयों में इस विषय पर विचार किया है, वे इस विचार को प्रसारित करते रहे हैं एवं इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सैद्धांतिक ज्ञान एवं व्यावहारिक कार्यक्रम प्रदान करते रहे हैं, किन्तु किसी कारणवश यह विचार पर्याप्त मात्रा में नागरिकों तक उस समय में मुखरित नहीं हो पाये। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने प्रत्येक समाज में आदर्श व्यक्ति, आदर्श नागरिक के निर्माण के लिए व्यावहारिक कार्यक्रम दिया है। जब हम रामराज्य की बात करते हैं तो अधिकतर व्यक्ति यह सोचते हैं कि इसका धर्म से कुछ संबंध है। वास्तव में रामराज्य जीवन व्यवस्था का एक उच्च स्तरीय वैज्ञानिक सिद्धांत है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है, किसी भी धर्म की भावनाओं एवं बंधन को छोड़े बिना ही। श्रीरामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकांड में रामराज्य का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। ऐसा रामराज्य वर्तमान समय में भी स्थापित करना वैदिक विज्ञान और उसके प्रयोगों को अपनाकर पूर्णतः संभव है। वेद से तात्पर्य ज्ञान से है, वैदिक मार्ग से तात्पर्य उस मार्ग से है जो पूर्ण ज्ञान, शुद्ध ज्ञान, प्राकृतिक ज्ञान विधान और पूर्ण सामर्थ्य पर आधारित है, यह सृष्टि एवं प्रशासन का मुख्य आधार है, जो सृष्टि की अनन्त विविधताओं को पूर्ण सुव्यवस्था के साथ शासित करता है। इसीलिये वेद को सृष्टि का संविधान भी कहा गया है। प्राकृतिक विधान की यह आंतरिक बुद्धिमत्ता व्यक्तिगत स्तर पर मानव शरीर की संरचना एवं कार्य प्रणाली का आधार है एवं साथ ही वृहत स्तर पर यह ब्रह्माण्डीय संरचना सृष्टि का आधार है। जैसी मानव शरीर की है, वैसी ही सृष्टि है।
‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’
प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के अन्दर विद्यमान इस आंतरिक बुद्धिमत्ता को इसकी पूर्ण संगठन शक्तिको प्रदर्शित करने एवं मानव जीवन एवं व्यवहार को प्राकृतिक विधानों की ऊर्ध्वगामी दिशा में विकास करने के लिए पूर्णतया जीवंत किया जा सकता है, ऐसा करने से कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक विधानों का उल्लंघन नहीं करेगा एवं कोई भी व्यक्ति उसके स्वयं के लिए अथवा समाज में किसी अन्य व्यक्ति के लिए दुःख का आधार सृजित नहीं करेगा। जब हम वैदिक प्रक्रियाओं द्वारा बुद्धिमत्ता को जीवंत करते हैं तो हम उसके साथ ही जीवन के तीनों क्षेत्रों आध्यात्मिक (चेतना का भावातीत स्तर), आधिदैविक (चेतना का बौद्धिक एवं मानसिक स्तर) एवं आधिभौतिक (वह चेतना जो भौतिक शरीर, भौतिक सृष्टि को संचालित करती है) को एक साथ जीवंत करते हैं। परमपूज्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी, शंकराचार्य, ज्योतिर्मठ, बद्रिकाश्रम हिमालय के स्थायी आशीर्वाद एवं परम पूज्य ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी के दैवीय आशीर्वाद एवं इच्छानुरूप महर्षि विश्व शांति आन्दोलन की स्थापना श्री गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व को जुलाई 2008 में की गई थी। हजारों प्रतिभागी मानव जीवन, समाज और राष्ट्रीय स्तर पर शांति की स्थापना के सहयोग के लिये आगे आये। साढ़े छः साल बाद महर्षि जी की एक वीडियो रिकार्डिंग सुनकर स्मरण हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन ‘आदर्श जीवन’ होना चाहिये। हम सबको ज्ञात है कि हमारे समाज को, हमारे नगरों को, राज्यों को और हमारे प्रिय भारतवर्ष को आदर्श बनाना अत्यावश्यक है। अतः हमने योजना बनाई और शुभ दिवस 11 जनवरी, 2015 को ज्ञानयुग दिवस के समारोह के दौरान ही महर्षि आदर्श भारत अभियान का शुभारम्भ किया है। आप सभी का आवाहन है कि महर्षि आदर्श भारत अभियान की पुस्तक पढ़ें अथवा www.aadarshbharat.net वेब साइट पर जाकर इस अभियान के विषय में पूर्ण जान कारी प्राप्त करें और इसमें सहयोगी बनें।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
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