'भावातीत ध्यान’ का अनुभव जो भी करना चाहता है उन सभी के लिये ‘भावातीत ध्यान’ उपलब्ध है। परमपूज्य महर्षि महेश योगी जी प्रदत्त यह ध्यान प्रक्रिया वैदिक योग विज्ञान पर आधारित है। यह मानव की चेतना को जागृत करने का योग है। प्रकृति भी चेतना द्वारा ही चलायमान है। यह चराचर विश्व अपनी गति से चल रहा है किंतु मानव भौतिकवादिता के मोह में पड़ता चला जा रहा और तथाकथित आराम के लिये वह प्रकृति का मनचाहे रूप से दोहन कर रहा है, परंतु इतनी प्राप्ति के पश्चात् भी वह आनन्दित व सुखी नहीं है। यह सत्य है कि आनन्द तो मात्र मानव में ही है और वह इस भौतिक जड़तावाद में आनन्द की अनुभूति चाहता है, एक के बाद दूसरी और कभी न समाप्त होने वाली इच्छाओं की पूर्ति में अपने शरीर व प्रकृति का दोहन कर रहा है, अन्ततोगत्वा उसे निराशा ही हाथ लग रही है। वह उस मृग के समान है जो अपनी नाभि में स्थित मणि की सुगन्ध पर मोहित होकर उसे सम्पूर्ण वन में ढूंढा करता है और निराश रहता है। मानव भी ठीक इसी प्रकार सुख-शान्ति व आनन्द की प्राप्ति के लिये बौरा रहा है, व्याकुल है जबकि यह सब उसे ईश्वर ने उसके जन्म के साथ ही दिया है। आवश्यकता मात्र उसे स्वयं में खोजने की है और स्वयं की खोज का सहजतम् मार्ग है ‘‘भावातीत-ध्यान।” इसके नियमित अभ्यास से मानवीय चेतना जागृत होती है जो मानवीय तन, मन, व बुद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हुए हमें सत्य व असत्य का भेद बताती है। हमारे अज्ञान को, निराशा को दूर करते हुए मानव जीवन को आनन्द की ओर ले जाती है। तब मानव को यह ज्ञान होता है कि व्यर्थ ही हमने समय गँवा दिया। किंतु यह भी कहा जाता है कि ‘कभी भी देर नहीं होती’ अर्थात् ‘आप जब भी जागो आपके लिये सवेरा तभी होगा’ और अभी भी समय है, अपनी आंतरिक चेतना को जागृत करने का और यह तो ठीक उसी प्रकार है कि दूध मे जितनी चीनी डालते जायेंगे उसकी मिठास उतनी अधिक बढ़ती जाएगी। अतः भावातीत-ध्यान को अपने दैनिक जीवन में सम्मिलित कीजिये और स्वयं के आनन्द में डुबकी लगाइये। ‘‘भावातीत ध्यान” वसुधैव कुटुम्बकम् का भी परिचायक है क्योंकि महर्षि कहते थे कि जिस प्रकार ईश्वर की भक्ति यदि सामूहिक हो तो सम्पूर्ण समूह को तो लाभान्वित करती ही है साथ ही प्रकृति व पर्यावरण को भी इसका लाभ मिलता है। ठीक इसी प्रकार सामूहिक भावातीत ध्यान से स्वयं के कल्याण के साथ-साथ विश्व का भी कल्याण होता है।
हमें यह सदैव स्मरण रखना होगा कि हमें क्या करना है और क्या नही? जिस प्रकार हंस दूध व पानी के मिश्रण में से दूध को पी जाता है और पानी को छोड़ देता है, मानव को यह विद्या प्राप्त होती है भावातीत ध्यान के नियमित अभ्यास से और तब हम सकारात्मकता व नकारात्मकता से मिश्रित इस वातावरण में से सकारात्मकता का चयन करते हुए जीवन को आनन्द से पूर्ण कर लेते हैं। इस आनन्द का अनुभव आप भी कर सकते हैं, बस देर है तो ‘‘भावातीत ध्यान” की शरण में आने की क्योंकि यह जीवन है और जीवन का उद्देश्य है - सामान्य से उत्तम, उत्तम से श्रेष्ठता की ओर प्रवास करना तो अपने बहुमूल्य समय व ऊर्जा को केन्द्रित करते हुए ‘भावातीत ध्यान’ के साधक बनिये।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
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