ब्रह्मचर्य
महर्षि दधिचि का अस्थि-दान और महाराज भगीरथ की घोर तपस्या के फलस्वरूप गंगावतरण हमें स्वयं के प्रति कठोर और लोक के प्रति उद्धार होने का संदेश देते हैं। भावातीत ध्यान शैली इन्द्रियानुशासन द्वारा हमें लोकमंगल हेतु समर्थ होने का पथ प्रशस्त करती है।
“ब्रह्माणि चरतीति ब्रह्मचारी।“ ब्रह्म का पठन, पाठन, चिन्तन तथा रक्षण करने वाले को ब्रह्मचारी कहते हैं। महर्षि पतंजलि ने ब्रह्मचर्य को यम तथा सार्वभौमिक महाव्रत कहा है और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों को महाव्रती। श्रीमद्भागवत में सर्वात्मा भगवान को प्रसन्न करने के जो तीस लक्षण बताए गए हैं उनमें ग्यारवां लक्षण ‘ब्रह्मचर्य’बतलाया गया है। इस प्रकार जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करके भी भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त किया जा सकता है। अपनी इन्द्रियों एवं मन पर संयम रखते हुए शक्तियों को अन्तर्मुखी कर ब्रह्म की प्राप्ति करना ब्रह्मचर्य है। यह एक व्रत है, साधना है जो हमारी अन्तर्निहित शक्तियों को संयम प्रदान करती है। जिससे मानव शरीर में बल, बुद्धि, उत्साह और ओज में वृद्धि होती है। साथ ही आलस्य एवं तन्द्रा का नाश होता है। ‘‘ब्रह्मतत्व” से संपूर्ण प्रकृति का निर्माण हुआ है और प्रकृति का प्रत्येक जीव अपने जीवन के लिए प्रकृति पर आश्रित है। प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति यदि मानव है, तो इस श्रेष्ठता के साथ मानव के प्रकृति के प्रति कर्तव्य भी अधिक हैं। किंतु हम मानव ही पर्यावरण को सबसे अधिक हानि पहुंचा रहे हैं। आज संपूर्ण विश्व में चहुँ ओर नकारात्मकता का प्रभाव है। हम भोग की ओर आकर्षित होकर सब कुछ पाना चाहते हैं हम उस प्रत्येक भौतिक सुख को प्राप्त करना चाहते हैं जो इस युग में सम्भव है और यही नकारात्मकता का प्रमुख कारण है। प्रकृति ने हमें शरीर रूपी जो अनमोल उपहार दिया हैं हम उसका शोषण कर रहे हैं। दिनचर्या में अधिकतर समय हम धन को प्राप्त करने में गंवा रहे है। परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी कहते थे कि ‘‘भगवान ने मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हवा, पानी, भोजन और जीवन सभी को दिया है किंतु भोग की प्रवृत्ति के चलते हम उसका दोहन कर रहे हैं। हमारा प्रत्येक कर्म मानव जाति के उत्थान के लिए होना चाहिए और भारतीय वेद, संस्कृति सदैव वसुधैव कुटुम्बकम पर विश्वास करती है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक परिवार के समान है। यदि परिवार का एक भी सदस्य दुःखी होगा तो परिवार में सुख व आनंद कैसे हो सकता है? भारतीय वैदिक परम्परा में मानव को स्वयं के लिए कठोर एवं प्रकृति के प्रति उदार रहने का आदर्श स्थापित करती आई है। जिस प्रकार महर्षि दधीचि ने सबके कल्याण के लिए स्वयं की अस्थियों का दान दिया था व महापुरुष भागीरथ ने संपूर्ण जीवन तपस्या कर स्वर्ग से पवित्र गंगा को पृथ्वी पर लाये जो आज भी मानव के लिये जीवन दायनी है।“ ब्रह्मचर्य को धारण करना सभी के लिये कल्याणकारी है किन्तु विद्यार्थी जीवन में ब्रह्मचर्य सर्वाधिक लाभकारी होता है। यह मानव के जीवन की वह नींव है जिस पर हमारे भविष्य के जीवन का निर्माण होगा। अभी भी समय है यदि हमें मानवजाति को विनाश से बचाना है तो हमें ब्रह्मचर्य को जीवन में धारण करना होगा। गृहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है क्योंकि ब्रह्मचर्य ही प्रत्येक परिस्थिति का निडरता से सामना करने की शक्ति प्रदान करता है यह वह कवच है जो समस्त दुव्यर्सनों से दूर कर हमें संतुलित जीवन जीने की कला सिखलाता है। साथ ही ‘‘भावातीत ध्यान योग शैली” का नियमित अभ्यास हमें अपनी इन्द्रियों को संतुलित करने में हमारी सहायता करते हुए हमें, हमारे अधिकार एवं कर्त्तव्यों में सामंजस्य स्थापित कर जीवन को आनन्द की ओर अग्रसर करता है।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
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